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साध्वी श्री बहुला गोपाल सरस्वती दीदी जी

एक छोटा सा परिचय:- 
1. शरीर का वर्तमान नाम:- साध्वी बहुला गोपाल सरस्वती 
गुरु श्री गोपालाचार्य परम पुज्य स्वामी श्री गोपालानंद सरस्वती जी 

2. जन्मदिनांक:- 21 जून 1992 
जन्मतिथि:- ६ रविवार ज्येष्ठ माह 2049 

3. शरीर का पूर्व नाम:- तुलसी प्रजापति 

4. शरीर का जन्म स्थान:- रतन चौक, लिंबायत नीलगिरी चौरासी, सूरत, गुजरात  
आम पृष्ठभूमि:- गलवा, रायपुर, भीलवाड़ा-मेवाड़ (राजस्थान)

5. लौकिक शिक्षा:- Nothing 
(शून्य भी मेरे गुरुदेव जी से सिखा है।)

6. आध्यात्मिक शिक्षा:- परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान ग्वाल संत श्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के सानिध्य में गौ कृपा कथा, गीता, वेदांत, राम चरितमानस और पुराणों का अध्ययन कर गृह त्याग कर संन्यास लिया।

7. आध्यात्मिक जीवन प्रवेश:- दिनांक 27 अगस्त 2013 को पारिवारिक जीवन का त्याग कर गुरुदेव की शरण ली तथा 12 जुलाई 2014 दीक्षा ग्रहण की। 

सांसारिक जीवन से आध्यात्मिक यात्रा: 
वर्तमान शरीर का जन्म 21 june 1992 को सूरत, गुजरात में प्रजापति परिवार में हुआ। तथा बाल्यकाल गलवा, रायपुर, भीलवाड़ा, राजस्थान में बीता। परिवार की पृष्ठभूमि कृषि प्रधान होने कारण पढ़ाई पर विशेष ध्यान नहीं दे पाए। किसानों के गांव में उस समय बेटियों की पढ़ाई लिखाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाना तथा विद्यालय की गांव से 3 km की दूरी होना, शिक्षा से दूरियों का कारण बना, हालांकि इस बात का मलाल आज तक हृदय में बना हुआ है, परंतु प्रसन्नता की बात यह है की शिक्षा से दूरियाँ रही पर गौमाता की कृपा से गौमाता से सदैव नजदीकियाँ रही। ज्यादा पढ़ने के बाद मैं किसी की गुलामी या किसी की  अधीनता में नहीं रहूँ, इस हेतु गोमाता ने इस प्रकार की कृपा की।
गो-सेवा का काम महज 10 वर्ष की आयु में ईश्वर कृपा से मेरे पास आ गया था।
परन्तु पशुवत् भाव होने कारण सुकून नहीं मिला।
और पशुपति भाव आने के पीछे एक कारण यह था कि जीवन में अब तक इसी प्रकार का वातावरण मिला, जिसमें गौमाता को जानवर कहकर के संबोधित किया गया। गौ माता को लकड़ी मारना, अपशब्दों का प्रयोग करना, ये सब संगति का असर था।
दूसरा कारण यह था कि मेरे कोई गुरुजी नहीं थे और जिसके जीवन में गुरु नहीं है, उसका जीवन पशु के समान ही होता है।
परमात्मा की कृपा से एक अच्छी संगत थी, वो था गोबर....गोबर उठाने की सेवा में मात्र १ घंटे का ही समय लगता था, परंतु हम तो ३ घंटे तक गो ग्रह में ही समय व्यतीत करते थे। अब यदि मेरे जीवन का सच्चा साथी या मित्र कोई है, तो वो केवल गाय माता का गोबर।
जिस समय बालक-बालिकाओं की खेलकूद या खाने पीने की उम्र होती है उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि ये अपनी दुनिया नहीं है, परन्तु जाए कहा....? किसके पास जाए...? किस मार्ग पर जाए....? किसका संग करें....?
कलियुग में ऐसा कौन है, जिसके सानिध्य में हम एक नई दुनिया में जाकर कुछ अच्छा काम कर सके, इसी प्रकार के विचार सदैव हृदय में उठते रहते थे। जीवन इस प्रकार का था कि ""उजाड़ पशु १०० बाड़े तोड़े"" ऐसा मेरा जीवन था। आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण गोचारण के दौरान कुछ आय का काम भी करते थे। और जीवन का कार्य धीरे-धीरे आगे बढ़ा। एक दिन गो माता की कृपा से इष्ट देव की प्राप्ति हुई, अब गो-सेवा से इष्ट मेरे हृदय में इतने गहराई में बैठ गये थे कि अकेलापन कभी महसूस नहीं हुआ।
पूजा पाठ के नाम पर केवल गो सेवा ही थी, क्योंकि कोई गुरु होवे तो बतावे। जैसे-तैसे गो प्रेम के बंधन में बंध गयी। गायमाता को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के बाद कही घूमने जाना इत्यादि सारी इच्छाएं मानो लुप्त हो चुकी थी। मैं कभी किसी सामाजिक उत्सव में नहीं गयी क्योंकि गाय माता के पास तीनों पहर में से एक पहर में तो मुझे हाजिरी देनी ही पड़ती थी। जब परिवार का त्याग किया तब गाय माता को किसी ने कह दिया कि अब मेरा घर पर आना कभी नहीं होगा, अब मैं गायमाता को कभी नहीं दिखूंगी, तो गाय माता ने खाना पीना बंद कर, देह का त्याग करके, गोलोक धाम पधार गयी। कभी-कभी जब में मायूस होती हूँ, तो आज भी मुझे वही गाय माता की याद आती है और ऐसा एहसास होता है कि वही गौ माता आज भी मेरे साथ है। 
भगवती गौ माता की कृपा से एक दिन हमारे गांव में परम पूज्य गुरुदेव भगवान के माध्यम से चल रही विश्व की सबसे पहली लम्बी व सबसे बड़ी पदयात्रा ""31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा"" का आगमन हुआ, जिससे मेरा जीवन बदल गया। गुरुदेव भगवान के मुखारविंद से गौमाता की करूण व्यथा को सुनकर मन में ऐसा भाव आया कि वर्तमान समय में गौ माता की रक्षा एवं उनकी सेवा की महती आवश्यकता है। मन में निश्चय किया कि अब मोह माया, सांसारिक जीवन छोड़कर, गुरुदेव भगवान के सानिध्य में, गोमाता की सेवा में जीवन समर्पित करना चाहिए। माता-पिता व परिवारजनों से अनुमति प्राप्त कर मैंनें परम पूज्य गुरुदेव भगवान के सानिध्य में 27/08/2013 को गांव नांदुदा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया।
मैं पढ़ कर डिग्री, डिप्लोमा तो प्राप्त नहीं कर पाई परंतु आज मैं जो कुछ हूँ वो सब मेरी गाय माता से हूँ। मुझे गो सेविका कहलाने का सौभाग्य मिला है।आज गुरुदेव भगवान की कृपा से भगवती गौ माता की महिमा को जन-जन तक पहुंच कर गो कृपा कथा के माध्यम से गौशालाओं में सहयोग एवं नवनिर्माण मैंने मेरे बलबूते पे किया l
गौ महिमा गान से प्रभावित होकर के अब तक हजारों लोगों ने व्यसन का त्याग कर गोव्रत धारण करते हुए भगवती गौमाता को अपने घट में और घरों में स्थान दिया है।
कथा से प्रेरित होकर के शताधिक स्थानों पर गोशालाओं का निर्माण हुआ हैं।

जिम्मेदारियां:
वर्तमान में मुझे गुरुदेव भगवान की कृपा से निम्न सेवादायित्व प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है:-
1. 43 नियमों का पालन करते हुए गो कृपा कथा के माध्यम से गो महिमा का प्रचार करना।

2. श्री सुरभि समाधि स्थल पावन धाम, स्थान-अरनोता-कोशीथल, तहसील- सहाडा, जिला- भीलवाड़ा, राज्य- राजस्थान के निर्माण और संचालन का कार्य देखना।

3. श्री सुरभि गोलोक महातीर्थ, स्थान-सावरकुंडला, तहसील सावरकुंडला, जिला- अमरेली, राज्य- गुजरात के संचालन का कार्य देखना।

कार्य सिद्धि हेतु संकल्प :-
1. पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनना।
2. पूर्णतः गोव्रती प्रसादी का ही सेवन करना।