मुझे प्राप्त वर्तमान शरीर का जन्म दिनांक 07 जून 1995 में राजस्थान के बडोदिया, बांसवाडा, के ब्राह्मण शिक्षक दपंती के यहाँ हुआ। शरीर के माता पिता और भाई राजकीय सेवा मे शिक्षक होने से परिवारिक पृष्ठभूमि शिक्षा जगत की रही, इस कारण बचपन से ही शिक्षा का वातावरण प्राप्त हुआ। B.A, b.ed की शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में जीवन आगे बढ़ रहा था।
गौ-सेवा की बात करें, सीधी गो-सेवा प्राप्त नहीं हुई, लेकिन बचपन से ही कभी-कभी एहसास होता था कि गौमाता से हमारा कोई जनम-जनम का नाता है। कई जन्मों का रिश्ता है, लेकिन रिश्ते को परिभाषित करना मुश्किल था। समय बीतता गया और कुछ काल पश्चात्, ईश्वरकृपा से जीवन में बदलाव आया और परम पूज्य गुरुदेव भगवान का सानिध्य प्राप्त हुआ। परम पूज्य श्री सदगुरुदेव भगवान की सप्त दिवसीय गोभागवत कथा का आयोजन प्राप्त शरीर की जन्मभूमि पर हुआ और परम पूज्य गुरुदेव भगवान के मुखारविंद से गो भागवत कथा के प्रसंग में गौ माता की अद्भुत महिमा और वर्तमान कारुण्य स्थिति का श्रवण किया, तब पहली बार समझ में आया कि वर्तमान समय में गौमाता की रक्षा एवं उनकी सेवा की कितनी आवश्यकता है। आहार, आश्रय, औषधि की कितनी आवश्यकता है वर्तमान समय में अनगिनत गोवंश सड़कों पर अल्प आहार, अथवा अनाहार के कारण निर्बल अवस्था में विचरण कर रहा है। प्रतिदिन अनुमानतः गौमाताएं कसाइयों के द्वारा वधशालाओं में वध कर दी जाती हैं, अनेकों गोमाताएं मानव कहे जाने वाले संवेदनहीन असुरों द्वारा फेंकी पॉलीथीन खाकर प्राण त्याग देती हैं, कोई आश्रय नहीं होने के कारण मार्ग पर विचरण कर रही, गोमाता सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाती हैं, वर्तमान में गोमाता किसान, गोपालक तथा तथाकथित ज्ञानी, विद्वान, धर्मपरायण भक्त और सभ्य जनता की उपेक्षाओं की शिकार हो रही हैं,