Description:
"विद्यादायनी गोमाता" पुस्तक के संदर्भ में पूर्वकाल में बालक के 2 वर्ष की आयु पूर्ण होने के पश्चात् उसकी शिक्षा प्रारंभ हो जाया करती थी, जिसमें अक्षर-ज्ञान, अंक-ज्ञान, वास्तु-ज्ञान, उठने-बैठने का ज्ञान, खाने-पीने का ढंग, यह प्राथमिक शिक्षा घर पर परिजनों एंव माता-पिता द्वारा ही दी जाती थी। विद्या का उद्देश्य सिर्फ पेट भरना एंव जीवन संचालन कतई नहीं है, यह सब तो सामान्य जानकारी से प्राप्त किया जा सकता है। विद्या का उद्देश्य सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति और अंत में जनम-मरण के बंधन से मुक्ति है। विद्या कई प्रकार की होती है, सात्विक विद्या, राजसिक विद्या एवं तामसिक विद्या। वैसे तो सभी प्रकार की विद्या में गौमाता की बहुत बड़ी भूमिका होती है, लेकिन मानव कल्याण में सात्विक विद्या की बहुत बड़ी भूमिका होती है, और सात्विक विद्या प्राप्ति में गौमाता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। बिना गौमाता के सात्विक विद्या प्राप्त करना बहुत कठिन हो जाता है। विद्या सहजता से प्राप्त हो, विद्या सरलता से प्राप्त हो, विद्या प्राप्त करने में अधिक समय और अधिक उर्जा का व्यय न करना पड़े। उसके लिए गौमाता की शरण सबसे उत्तम साधन है। आप सोच रहे होंगे कि भला पढाई में गौमाता की क्या आवश्यकता, भला गाय माता का पढ़ाई से क्या संबंध हो सकता है, परंतु विद्यार्थी को विद्याध्ययन के लिए गौमाता की शरण अत्यंत आवश्यक है। कैसे आवश्यक है यह सारी संबंधित चर्चा "विद्यादायनी गोमाता" नामक पुस्तक में आपको प्राप्त होगी।