गाय पृथ्वी का अमोल रत्न एवं धरोहर है और सम्पूर्ण देवताओं का वांग्मय स्वरूप है* - स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, सुमेरु पीठ शंकराचार्य
सुसनेर। मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्थापित एवं श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा द्वारा संचालित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में चल रहें एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव के उपसंहार उत्सव के चतुर्थ दिवस पर स्वामी गोपालानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि मालवा क्षेत्र किसानों का क्षेत्र है लेकिन हमें यह ध्यान देना होगा कि हमें फसल से ज्यादा नस्ल की चिंता करनी होगी क्योंकि फसल बिगड़ने पर वह ठीक हो जाती है लेकिन नस्ल बिगड़ने पर उसका परिणाम सात पीढ़ियों तक भुगतना पड़ता है,इसलिए हमारी नस्ल को बचाने के लिए गोसेवा एवं संरक्षण जरूरी है और भारत सरकार गोहत्या करने वाले को फांसी की सजा देने का कानून बना दे तो भारत में फिर गो रक्षा के लिए कोई कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है ।
*उपसंहार उत्सव के चतुर्थ दिवस पर काशी सुमेरु पीठाधीश्वर परम पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद जी सरस्वती जी महाराज ने अपने आशीर्वाद में बताया कि विश्व के इस प्रथम गो अभयारण्य का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक रूपी एक ऋषि ने नीव रखी लेकिन बाद में शासन इसकी व्यवस्था नहीं संभाल पाया और 06 वर्ष बाद पुन: इस अभयारण्य की बागडोर एक संत के हाथ में आ जाती है ओर एक संत यहां पर एक वर्ष तक निरन्तर गोमाता की महिमा गान करके यहां का वातावरण गोमाता के जीवन में खुशहाली एवं प्रसन्नता का वातावरण इस पथरीले क्षेत्र में कर देता है और यहां विराजित सभी वेदलक्षणा गोवंश प्रसन्न है ।
शंकराचार्य भगवान ने आगे बताया कि धार्मिक,भौतिकवाद एवं अध्यात्म दृष्टि से देखे तो जब गाय रूपी पृथ्वी पर अनाचार,दुराचार एवं पापाचार बढ़ता है तो भगवान राम त्रेता में यहां मानव के रूप में प्रकट होते है ओर द्वापर में तो भगवान कृष्ण स्वयं गोचारण कर हमें गोसेवा करने का संदेश देते है क्योंकि गाय पृथ्वी का अमोल रत्न एवं धरोहर है और सम्पूर्ण देवताओं का वांग्मय स्वरूप है और पौराणिक आधार पर इस धरा पर ऐसा कोई देवता , नदी एवं तीर्थ नही जो गाय के शरीर पर न विराजमान न हो और गाय की सेवा,पूजन एवं अर्चन से इस धरा पर ऐसा कोई पदार्थ नहीं जिसे हम प्राप्त न कर सकें क्योंकि अनेक प्रकार के प्रायश्चित करने के बाद भी मनुष्य के शरीर का पापक्षेम नहीं होता लेकिन पंचगव्य जिसके प्रासंग से हड्डी तक के पाप नष्ट हो जाता है और जब यह भौतिक शरीर को कैंसर जैसी जटिल एवं असाध्य बीमारियों को भी भी गोमाता के पंचगव्य से ठीक किया जा सकता है और अन्त में प्राण छूटने पर पुच्छ से गोलोक की प्राप्ति का आधार भी अपने पुराणों में निरूपित एवं वर्णित है।
भारत कृषि प्रधान है और सतयुग से लेकर आज तक गोमाता के गोबर से हमारी ऋषि कृषि जीवित रही है जिसे मैकाले शिक्षा के माध्यम से भारत में तैयार हुए काले अंग्रेजों ने हरित एवं श्वेत क्रांति का नाम देकर रासायनिक जहर एवं गाय सा दिखने वाला विदेशी पशु जो सूअर के जीन से तैयार किया है जिसके दूध से कैंसर होता है उसे बढ़ावा देकर हमारी भारतीय गोमाता की उपेक्षा की है,जिसके लिए हमें संगठित एवं जागृत होकर गौसेवा में जुटना होगा साथ ही शंकराचार्य भगवान ने कहां कि हमारे देश में बकरी,सूअर एवं मुर्गा पालने की सरकार की योजना तो है लेकिन गोपालन की कोई ठोस योजना नहीं है इसलिए भारत सरकार को शीघ्र गोपालन मंत्रालय का गठन करना चाहिए और देश की सभी चारागाह भूमि से अतिक्रमण हटाकर उसे गोपालन के लिए संरक्षित एवं सुरक्षित करना चाहिए साथ ही भारत के प्रत्येक सनातनी को अपनी आय का कुछ हिस्सा भगवती गोमाता की सेवा के लिए लगाना चाहिए और उसे गौशालाओं के लिए दान करना चाहिए।
पूज्य शंकराचार्य भगवान का गो अभयारण्य पधारने पर भव्य स्वागत किया गया और स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती महाराज सहित सभी संतो एवं गो सेवकों ने शंकराचार्य भगवान की चरण पादुकाओं का पूजन अर्चन किया।
एक वर्षीय गोकृपा कथा के उपसंहार उत्सव के चतुर्थ दिवस पर चुनरी यात्रा राजस्थान एवं मध्यप्रदेश राज्य से समस्त संत आसाराम बापू जी महाराज के गोभक्त साधक , पटपड़ा,दुल्हे सिंह , सालरिया,मेवाड़ भक्त मण्डल,समस्त गोभक्त मण्डल, सनवाड़, राजनगर एवं बोरखेड़ी कावल ग्रामवासियों ने सम्पूर्ण विश्व के जन कल्याण के लिए गाजे बाजे के साथ भगवती गोमाता के लिए चुनरी लेकर पधारे और कथा मंच पर विराजित भगवती गोमाता को चुनरी ओढ़ाई एवं गोमाता का पूजन कर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन करके यज्ञशाला की परिक्रमा एवं गोष्ठ में गोसेवा करके सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।